दिग्गज फिल्ममेकर ओम राउत नेटफ्लिक्स की आगामी ड्रामा ‘इंस्पेक्टर जेडे’ के निर्माता बने
Thursday, Aug 07, 2025-02:11 PM (IST)

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। 70 और 80 के दशक की मुंबई की संकरी गलियों में, जब कुख्यात 'स्विमसूट किलर' तिहाड़ जेल से फरार हो जाता है, तो एक जांबाज़ पुलिस अफसर उसे पकड़ने की ठान लेता है। सच्ची घटना से प्रेरित यह कहानी जज़्बे और हिम्मत की है, जो एक रोमांचक बिल्ली-चूहे के खेल में बदल जाती है। नेटफ्लिक्स की नई क्विर्की ड्रामा ‘इंस्पेक्टर ज़ेंडे’ 5 सितंबर को रिलीज़ हो रही है।
इस फ़िल्म में बहुमुखी अभिनेता मनोज बाजपेयी इंस्पेक्टर मधुकर जेडे की भूमिका में हैं, वहीं जिम सारभ चालाक ठग और कुख्यात “स्विमसूट किलर” कार्ल भोजराज का किरदार निभा रहे हैं। फ़िल्म का निर्देशन और लेखन चिन्मय डी. मांडलेकर ने किया है। इसके साथ भालचंद्र कदम, सचिन केदकर, गिरीजा ओक और हरीश दूधाडे भी अहम भूमिकाओं में नजर आएंगे।
‘इंस्पेक्टर ज़ेंडे’ अपराध, हास्य और पुरानी यादों को एक साथ जोड़ती है — एक ऐसा दौर जब पुलिस की सबसे बड़ी ताकत उनका ‘गट फीलिंग’ और जज़्बा हुआ करता था।
निर्माता ओम राउत कहते हैं, "इंस्पेक्टर ज़ेंडे की कहानी ऐसी है जिसे देखा जाना चाहिए, याद रखा जाना चाहिए और सेलिब्रेट किया जाना चाहिए। यह एक बेहद दिलचस्प और प्रेरणादायक केस की कहानी है, और सबसे अहम बात — यह मेरे पिता का सपना था कि इंस्पेक्टर ज़ेंडे पर एक फ़िल्म बने। नेटफ्लिक्स के साथ इस कहानी को पर्दे पर लाना एक शानदार सफर रहा है।”
निर्माता जय शेवकरमणि कहते हैं, "नेटफ्लिक्स का जज़्बा है ऐसे अनोखे और सच्चे किरदारों की कहानियों को दुनिया भर के दर्शकों तक पहुँचाना। इंस्पेक्टर ज़ेंडे एक ऐसा ही हीरो है, जिसकी कहानी लोगों को ज़रूर देखनी चाहिए।"
नेटफ्लिक्स इंडिया की ओरिजिनल फ़िल्म्स डायरेक्टर रुचिका कपूर शेख कहती हैं, “इंस्पेक्टर ज़ेंडे पारंपरिक पुलिस बनाम अपराधी की कहानी को नए ढंग से पेश करती है — इसमें अपराध और हास्य का बेहतरीन मेल है। सच्ची घटना से प्रेरित यह फिल्म चिन्मय डी. मांडलेकर की हिंदी में निर्देशन की पहली फिल्म है, जिसमें मुंबई की ज़मीन से जुड़ी नज़र और कहानियों की पकड़ साफ झलकती है। मनोज बाजपेयी और जिम सारभ के शानदार अभिनय के साथ, यह फिल्म अपने जीवंत किरदारों और कहानी से दर्शकों को बांधे रखेगी। नेटफ्लिक्स हमेशा ऐसी कहानियों की तलाश में रहता है जो हमारे देश की संस्कृति और इतिहास में रची-बसी हों और लोकल हीरोज़ को सलाम करती हों।”
इंस्पेक्टर ज़ेंडे एक सलाम है उस पुराने दौर की पुलिसिंग को, जब ‘जुगाड़’ और ज़िद से केस सुलझाए जाते थे। यह एक आम आदमी की असाधारण कामयाबी की कहानी है।