बाथरूम में फूट फूट कर रोता हूं, लेकिन किसी को बेबसी नहीं दिखाता..बुरे वक्त में खुद को यूं संभालते हैं शाहरुख खान
Wednesday, Nov 20, 2024-04:22 PM (IST)
मुंबई. सुपरस्टार शाहरुख खान न सिर्फ देश बल्कि विदेश में तगड़ी फैन फॉलोइंग रखते हैं। वो न सिर्फ अपनी एक्टिंग बल्कि अपने दयालु और खुशनुमा नेचर से भी लोगों का खूब दिल जीतते हैं। लोगों के सामने किंग खान जितना मुस्कुराते दिखते हैं, असल जिंदगी में वह उतने ही इमोनशल हैं। इस बात का खुलासा हाल ही में शाहरुख ने खुद किया है और बताया कि वह लाइफ में निराश करने वाली परिस्थिति को बाथरूम में रोकर बहा देते हैं। फिर नए सिरे से काम पर फोकस करते हैं।
दुबई में ग्लोबल फ्रेट समिट में ‘फ्रॉम बॉलीवुड सुपरस्टारडम टू बिजनेस सक्सेस-की लर्निंग्स ऑन एंड ऑफ स्क्रीन’ विषय पर अपनी बात रखते हुए शाहरुख ने स्वीकार किया कि वह खुद की कमजोरियों को आंकते हैं लेकिन किसी और के सामने खुद को बेबस नहीं दिखाते।
एक्टर ने कहा, ‘‘मैं अपने बाथरूम में फूट फूट कर रोता हूं। आप इतने समय तक खुद पर तरस खा सकते हैं और फिर आपको यह विश्वास करना होगा कि दुनिया आपके खिलाफ नहीं है। आपकी फिल्म आपके कारण या दुनिया द्वारा आपके काम को बर्बाद करने की साजिश के कारण खराब नहीं रही। आपको यह विश्वास करना होगा कि आपने इसे बुरी तरह से बनाया है और फिर आपको आगे बढ़ना होगा।’
उन्होंने कहा, ‘‘आप सफलता से बहुत प्रेरित होते हैं और यही मेरी समस्या थी। मैं चीजों को हल्के में नहीं लेता, मैं सुबह उठता था और खुद से कहता था, 'मुझे यह करते रहना चाहिए'... सफलता आपको अलग-थलग कर सकती है और असफलता की ओर ले जा सकती है। जब आप सफल होते हैं, तो आपको इस बात से अवगत होना चाहिए कि आपके आस-पास की दुनिया बदल रही है। आपको चारों ओर देखने की जरूरत है, आप आंखों पर पट्टी बांधकर नहीं रह सकते।’
‘पठान’ एक्टर ने आगे कहा, ‘‘मेरी सफलता 90 के दशक में तब शुरू हुई जब मेरे देश भारत में खुलापन आया। हम दुनिया भर में घूम रहे थे और भारत के बारे में बात कर रहे थे। मैंने जिस तरह की फिल्में कीं, 'तुझे देखा तो ये जाना सनम' (1995 की हिट फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का जिक्र करते हुए) सभी को पसंद आई और कुछ लोगों ने तो 30 साल पहले इस फिल्म को देखकर शादी भी कर ली थी। इसमें खुशी, प्यार और स्विट्जरलैंड के पल थे। यह समय की निशानी थी।’’
शाहरुख खान ने कहा कि उन्होंने कम उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया था। जीवन को देखने का उनका तरीका यह था कि उन्हें कड़ी मेहनत करनी थी और सफल होना था ताकि उनके माता-पिता को यह बुरा न लगे कि वे उनका ख्याल नहीं रख सके।