13 साल की उम्र में लता मंगेशकर के सिर से उठ गया था पिता का साया, बेहद संघर्ष भरा रहा ''स्वर कोकिला'' का बचपन
Sunday, Feb 06, 2022-10:48 AM (IST)
मुंबई: रविवार की सुबह रे देश और हिंदी सिनेमा के लिए स्तब्ध कर देने वाली खबर लेकर आई। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का निधन हो गया है। स्वर कोकिला ने 8 बज कर 12 मिनट पर अंतिम सांस ली। उनके शरीर के कई अंग खराब हो गए थे। उनका इलाज काफी दिनों से अस्पताल में चल रहा था।
लता मंगेशकर भारतीय सिनेमा की सबसे लोकप्रिय गायिका होने के साथ सबसे आदरणीय गायिका भी थीं। लता जी ने संगीत की दुनिया को छह दशक तक अपने सुरों से नवाजा। उनकी आवाज का जादू जहां सरहद पर खड़े जवान में जोश की लहर को दौड़ा देता है तो वहीं उनके गाने सुनकर लोगों की आंख में आंसू भी आ जाते हैं। लता जी 50 से 60 के दशक में गाए उनके गाने आज भी लोगों की जुबान पर रहते हैं उनकी आवाज का जादू हू है कि उन्हें स्वर कोकिला भी कहा गया।
28 सिंतबर 1929 को इंदौर में जन्मीं लता मंगेशकर ने 5 साल की उम्र में ही पिता के साथ नाटकों में अभिनय करना शुरू कर दिया था। इसके साथ ही लता संगीत की शिक्षा अपने पिता से लेने लगी। लता ने वर्ष 1942 में फिल्म किटी हसाल के लिए अपना पहला गाना गाया लेकिन उनके पिता को लता का फिल्मों के लिये गाना पसंद नहीं आया और उन्होंने उस फिल्म से लता के गाए गीत को हटवा दिया था।
साल 1942 में 13 वर्ष की छोटी उम्र में ही लता के सिर से पिता का साया में उठ गया और परिवार की जिम्मेदारी उनके उपर आ गई थी। इसके बाद उनका पूरा परिवार पुणे से मुंबई आ गया था। लता को फिल्मों में काम करना जरा भी पसंद नहीं था, बावजूद इसके परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी को उठाते हुए उन्होंने फिल्मो में अभिनय करना शुरू कर दिया।
साल 1942 मे लता को ‘पहली मंगलगौर’ में अभिनय करने का मौका मिला। वर्ष 1945 में लता की मुलाकात संगीतकार गुलाम हैदर से हुई। गुलाम हैदर लता के गाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए थे। गुलाम हैदर ने फिल्म निर्माता एस .मुखर्जी से यह गुजारिश की कि वह लता को अपनी फिल्म शहीद में गाने का मौका दे। एस.मुखर्जी को लता की आवाज पसंद नही आई और उन्होंने लता को अपनी फिल्म में लेने से मना कर दिया। इस बात को लेकर गुलाम हैदर काफी गुस्सा हुए और उन्होंने कहा यह लड़की आगे इतना अधिक नाम करेगी कि बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक उसे अपनी फिल्मों में गाने के लिए गुजारिश करेगें।
साल 1949 में फिल्म महल के गाने आयेगा आने वाला गाने के बाद लता बालीवुड में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गई। इसके बाद राजकपूर की बरसात के गाने जिया बेकरार है, हवा मे उड़ता जाये जैसे गीत गाने के बाद लता सफलता की सीढ़िया चढ़ने लगी सी.रामचंद्र के संगीत निर्देशन में लता ने प्रदीप के लिखे गीत पर एक कार्यक्रम के दौरान एक गैर फिल्मी गीत ए मेरे वतन के लोगों गाया। इस गीत को सुनकर प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू इतने प्रभावित हुए कि उनकी आंखो मे आंसू आ गए थे।
90 के दशक तक आते आते लता कुछ चुनिंदा फिल्मो के लिए ही गाने लगी । साल 1990 में अपने बैनर की फिल्म लेकिन के लिए लता ने यारा सिली सिली ..गाना गाया । यह फिल्म तो चल नहीं पाई लेकिन इसका गाना लता के बेहतरीन गानों में से एक माना जाता है।